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Ek Naav Wale Ki Kahani : एक बार की बात है। एक बड़ा व्यापारी एक छोटे से गांव में आया। उस व्यापारी में बहुत ही ज़्यादा घमड था। वो व्यापारी उस गांव में अपनी एक फैक्ट्री बनाना चाहता था और वो उस जगह पर जा ही रहा होता है कि उसके सामने एक ऐसा रास्ता आता है जहा उसके सामने एक नदी होती है और नदी के उस पार गांव होता है
अब उसके पास दो रास्ते होते हैं कि या तो वो सड़क के रास्ते से निकल कर उस गांव तक पहुंचे जिसमे उसको 7 से 8 घंटे लगेंगे या फिर एक नाव की मदत से नदी के रास्ते से होकर उस गांव तक पहुंचे जिसमे उसको सिर्फ 20 मिनट लगेंगे
उसने अपना समय बचाने के लिए नाव से जाने का फैसला किया।
उस वक्त वहा एक नाव वाला अपनी नाव लेकर खड़ा था। वो व्यापारी उस नाव में बैठ गया।
वो नाव ज़्यादा बड़ी नही थी उस नाव के एक तरफ वो आदमी बैठा था जो नाव चला रहा था और दूसरी तरफ वो व्यापारी बैठा था। नाव में बैठने के कुछ वक्त बाद व्यापारी ने उस नाव वाले से पूछा "तुझे पता है कि इस वक्त तेरी नाव में कौन बैठा हुआ है" ये सुनकर नाव वाले ने बड़े ही भोलेपन से जवाब दिया "नही साहब मुझे नही पता की आप कौन हो"
ये सुनकर व्यापारी बोला "अरे तू क्या अखबार नही पड़ता अखबार में तो हर दूसरे दिन मेरी फोटो आती है" ये सुनकर नाव वाले ने कहा "अरे साहब मुझे पढ़ाई लिखाई नही आती जब मैं बहुत छोटा था तभी मेरे पिताजी गुज़र गए तब से मैं अपने परिवार को संभालने के लिए काम कर रहा हूं तभी मेरा स्कूल छूट गया और मैं पड़ नही पाया।"
ये सुनकर व्यापारी उसका मज़ाक उड़ाते हुए ज़ोर ज़ोर से हंसने लगा और बोला "तुझे पड़ना लिखना भी नही आता अरे ऐसी ज़िंदगी भी किस काम की" ये सुन कर उस नाव वाले को बुरा तो लगा लेकिन वो चुप रहा और कुछ नहीं बोला।
थोड़ी देर बाद वो व्यापारी नाव वाले से बोला "ये जो तुम ज़मीन देख रहे हो बहुत ही जल्द यहां पर हमारी फैक्ट्री बनेगी जहा पर हमारे ब्रांड की मिनिरल वाटर की बॉटल्स बनेगी।"
उस नाव वाले को व्यापारी की बात समझ नही आई तो उसने व्यापारी से पूछा "क्या बनेगा साहब?" व्यापारी ने चीड़ कर कहा "अरे हमारे फैक्ट्री में पानी की बोतले बनेंगी जो तेरे गांव में नही बिकती लेकिन शहर में बहुत बिकेंगी। अरे तू कभी शहर गया होगा तो तूने देखा ही होगा दुकानों पर पानी की बोतले बिकते हुए।"
ये सुनकर नाव वाला बोलो "अरे साहब मुझे कैसे पता होगा में तो कभी इस गांव से बाहर गया ही नहीं"
उस नाव वाले की बात सुनकर व्यापारी हस्ते हुए बोला " तू इस गांव से बाहर तक नहीं निकला अरे तेरी ये ज़िंदगी किस काम की" ये सुनका नाव वाले को बहुत बुरा लगा उसे सच में लगने लगा की उसकी ये ज़िंदगी सच में किसी काम की है ही नहीं।
अपनी इस सोच की वजह से नाव वाले का ध्यान नाव से हट गया और नाव एक बड़े पत्थर से टकरा गई उस नाव में पानी भरने लगा।उस जगह पानी बहुत गहरा था और किनारा भी दूर था नाव वाले को ये बात समझ आ गई की अब इस नाव को बचाने का कोई रास्ता नहीं है वो अपनी जान बचाने के लिए नदी में छलांग लगाने ही वाला था की उसने व्यापारी से पूछा "साहब आपको तैरना तो आता है ?"
ये सुनकर व्यापारी घबराते हुए बोला "ऐसा क्यों पूछ रहे हो ? मुझे तैरना नहीं आता" ये सुनकर नाव वाला हस कर बोला "अरे साहब आपको तैरना भी नहीं आता ऐसी ज़िंदगी किस काम की"
ये सुनकर उस व्यापारी को अपनी गलती का एहसास हुआ फिर वो व्यापारी घबराते हुए हाथ जोड़कर बोला " तुम जो कहोगे मै तुम्हे वो दूंगा तुम बस मेरी जान बचा लो"
तो उस नाव वाले ने कहा "अरे साहब आप घबराओ नही मुझे सिर्फ तैरना ही नहीं बल्कि डूबते हुए लोगो को भी बचाना आता है आप बस मुझे कसकर पकड़ लो मैं आपको किनारे पर ले जाऊंगा"
और फिर उस नाव वाले ने सिर्फ अपनी ही नही बल्कि उस व्यापारी की भी जान बचाई
सीख :हमे कभी भी किसी का मज़ाक नहीं उड़ना चाहिए या फिर किसी को अपने से छोटा नही समझना चाहिए क्युकी हमे नही पता की कब कैसे और कहां हमे किसकी ज़रूरत पड़ जाय।