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जीवन को सीख देने वाली प्रेरणादायक कहानी: एक बार एक छोटे से गांव में एक मूर्तिकार रहता था। जो बहुत ही सुंदर और आकर्षक मूर्तियां बनाता था। लेकिन अब वो आदमी थोड़ा बूढ़ा हो गया था। उस आदमी ने सोचा कि क्यों ना अब मैं अपने बेटे को मूर्तियां बनाना सीखा दू तो मेरा बेटा भी इस गांव में मशहूर हो जाएगा आदमी ने जब अपने बेटे से इस बारे में बात की तब बेटा भी मान गया
अगले ही दिन बेटे ने मूर्तियां कैसे बनाते है ये सीखना शुरू कर दिया। कुछ वक्त बाद बेटा भी अच्छी मूर्तियां बनाने लगा क्युकी जब बेटा मूर्तियां बनाता तब उसके पिता उसके पास खड़े रहते और उसे समझाते रहते की क्या गलती तुम कर रहे हो। कुछ वक्त बाद बेटा अपने पिता से भी अच्छी मूर्तियां बनाने लगा। गांव वाले लोगो ने भी बेटे की मूर्तियों को पिता की मूर्तियों से ज़्यादा अच्छा बोलना शुरू कर दिया बेटा ये सब सुनकर काफी खुश हुआ बेटे की इतनी तारीफ सुनकर पिता बेटे से भी ज़्यादा खुश हुए।
लेकिन अब बेटे की बनाई हुई मूर्तियों मे पिता ने जब बेटे को उसकी गलती बताई तब बेटे अपने पिता से कहा मैं आपसे कही ज़्यादा अच्छी मूर्तियां बनाना जानता हूं और मेरी मूर्तियां की कीमत तो आपकी बनाई हुई मूर्तियों से ज़्यादा है अब आपको मुझे सलाह देने की कोई ज़रूरत नहीं। बेटे की ये बात सुनकर पिता चुप हो गए और वहा से चले गए
फिर कुछ दिन बाद बेटे ने अपने पिता से कहा कि मुझे लगता है कि मेरी बनाई हुई मूर्तियों की कीमत उतनी नही होनी चाहिए जितनी अभी हैं मुझे लगता है की मुझे दूसरी दुकान में अपनी मूर्तियां बेचनी चाहिए इससे मेरा ज़्यादा मुनाफा होगा। पिता ने कहा ठीक है तुम अपनी अलग दुकान खोल लो।
बेटे ने अपनी अलग दुकान खोल दी और अपनी मूर्तियों का दाम अपने पिता की मूर्तियों से ज़्यादा रखा अब जो लोग पिता की मूर्तियां ज़्यादा खरीदते थे उन्होंने बेटे की मूर्तियां जिनका दाम भी ज़्यादा था उनको खरीदना शुरू कर दिया बेटा बहुत खुश था की मैं अपने पिता से ज़्यादा अच्छा मूर्तिकार बन गया।
कुछ वक्त तक तो सब कुछ ऐसे ही चलता रहा लेकिन कुछ वक्त बाद लोगो ने बेटे की मूर्तियों को देखना भी बंद कर दिया अब लोग पिता की दुकान पर ज़्यादा जाते और वही से मूर्तियां खरीद ते बेटे ने अपनी मूर्तियों को और अच्छे से बनाने की कोशिश की ताकि लोगो को उसकी बनाई हुई मूर्तियां पसंद आए लेकिन कोई फायदा नही हुआ बेटा कोशिश करते करते थक गया। अपने पिता की दुकान पर इतने लोगो की भीड़ देखकर बेटे को काफी गुस्सा आया
बेटा अपने पिता के पास गया और बोला "आपने अपनी मूर्तियों में ऐसा क्या किया की लोग आपकी ही दुकान से मूर्ति खरीद रहे हैं मेरी मूर्तियों को तो कोई देखना भी नही चाहता" पिता ये सुनकर मुस्कुराए और कहा "ऐसा इसलिए हुआ क्युकी तुम ने ये सीखना ही छोड़ दिया की अच्छी मूर्ति बनाते कैसे हैं। ये सुनकर बेटे ने कहा "लेकिन मैने अपनी मूर्तियों को अच्छा बने की बहुत कोशिश की लेकिन फिर भी कोई फायदा नहीं हुआ।" ये सुनकर पिता बोले "ऐसा इसलिए हुआ क्युकी तुम्हे पता ही नही है की तुम कहा गलती कर रहे हो तुम्हे पता ही नही। मैं तुम्हे जैसा मूर्तिकार बनाना चाहता था वैसे तुम बने ही नही बल्कि थोड़ी सी तारीफ लोगो से सुन लेने पर तुम्हारे अंदर इतना घमंड आ गया की तुमने अच्छी मूर्ति बनाना सीखा ही नही। तुम थोड़े में ही इतना ज़्यादा खुश हो गए।" ये सुनकर बेटे को अपनी गलती का एहसास हुआ बेटा अपने पिता के पास वापस लौट आया और अच्छी मूर्ति कैसे बनाते है ये सीखना उसने फिर से शुरू कर दिया।
सिख:
हम जो भी काम करते हैं हमें उस काम को हमेशा सीखते रहना चाहिए फिर भले ही गलतियों से सीखो या फिर अनुभव से सीखो लेकिन कभी भी अपने आप पर या अपने काम पर घमंड मत करो।
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