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Raja aur imandaar wazir ki kahani : बहुत समय पहले एक राजा अपने राज्य में रहता था। राजा के दरबार में बहुत सारे दरबारी रहते थे लेकिन राजा सबसे ज़्यादा भरोसा अपने वज़ीर पर किया करता था।
राजा और वज़ीर के बीच काफी अच्छा रिश्ता था लेकिन इसके लिए वज़ीर को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता था जैसे की वज़ीर राजा के काम की वजह से अपने परिवार को समय भी नहीं दे पाता इसलिए राजा एक बार को अपने बेटे पर शक कर सकता लेकिन अपने वज़ीर पर नही क्युकी उनके रिश्ते को पूरे तीस साल बीत चुके थे। तीस साल से वज़ीर राजा का हर ज़रूरी काम करता।
लेकिन ये बात दरबार में रहने वाले दरबारियों को बर्दाश्त नहीं होती वो ये सोचकर वज़ीर से जलते की हम भी इसी महल में रहते हैं राजा जब भी बुलाते है हम जाते है राजा का हर ज़रूरी काम पूरा करते हैं लेकिन फिर भी राजा आंख बंद करके वज़ीर पर ही भरोसा करते हैं।
दरबारियों ने एक साथ मिलकर वज़ीर को झूठे इल्ज़ाम मे फसाने की साज़िश की और राजा के सामने वज़ीर के ऊपर झूठे इल्ज़ाम लगाय और झूठे सबूत पेश करके वज़ीर को धोखेबाज़ साबित किया वज़ीर को उस वक्त इन सब के बारे में कुछ पता ही नही था बल्कि वह तो राजा के काम से ही दूर गया था। जैसे ही वज़ीर वापस लौट कर आया
तभी वज़ीर को ये सारा मामला पता चला लेकिन वज़ीर को कुछ बोलने का मौका ही नही मिला क्युकी जिन लोगों ने वज़ीर के ऊपर इल्ज़ाम लगाय थे वो भी राजा के खास थे
इसलिए राजा ने वज़ीर को मौत की सज़ा सुनाई और उस वक्त सज़ा भी ऐसे देते थे कि मुजरिम के हाथ पैर बांध कर उसे एक ऐसे छोटे से मैदान में दिया जाएगा जहां खूंखार कुत्ते होंगे जो इंसान का गोश ही नही बल्कि उनकी हड्डियां भी चबा जाय और वहा से भागने का भी कोई रास्ता नही था।
लेकिन वज़ीर ने वो सज़ा भी हस्ते हस्ते मान ली लेकिन वज़ीर ने एक मांग रखी कि मुझे सज़ा दस दिन के बाद दीजिए ताकि मैने जिन लोगों से कर्ज़ लिया है मैं उन्हें वो वापस कर पाऊं। राजा ने वज़ीर की इस मांग को उसकी आखरी ख्वाहिश समझ कर मान लिया।
वज़ीर राजा के महल से निकलकर अपने घर गया और वहा से उसने सौ सोने के सिक्के लिए और उस इंसान के पास गया जो खूंखार कुत्ता की देखभाल करता था वज़ीर ने वो सौ सोने के सिक्के उस आदमी को दिए और कहा आज से दस दिनों तक मैं इन कुत्तों कि देखभाल करूंगा इसके लिए मैं तुम्हे ये सौ सोने के सिक्के दे रहा हु उस आदमी को ये सौदा अच्छा लगा और वो मान गया उसने कुत्तों की जिम्मेदारी वज़ीर को दे दी। अब वज़ीर उन कुत्तों की देखभाल करता उनको खिलाता पिलाता उनको घुमाता
ऐसे ही दस दिन बीत गए वज़ीर को सज़ा देने का वक्त हुआ जैसे ही कुत्तों ने वज़ीर को देखा कुत्ते उसके पास दौड़कर आए लेकिन उसे खाने के लिए नही बल्कि उसके साथ खेलने के लिए।
कुत्तों को वज़ीर के साथ खेलता हुआ देखकर राजा और बाकी दरबारी हैरान हो गए। राजा वज़ीर के पास आए और पुछा "ये सब क्या हो रहा है ये कुत्ते तो आसानी से की सी को भी छोड़ते नही फिर ये तुम्हारे साथ खेल कैसे रहे हैं?"
वज़ीर ने हंसकर कहा "क्युकी महाराज मैं पिछले दस दिनों से इन कुत्तों की देखभाल कर रहा हूं मैं इनको खिलाता हूं पिलाता हूं इनके साथ खेलता भी हूं और कहते हैं की कुत्तों की याददाश्त बहुत अच्छी होती हैं इन कुत्तों को मैने अपनी ज़िंदगी के सिर्फ दस दिन दिए इसलिए ये मुझे खा नही रहे बल्कि मेरे साथ खेल रहे हैं। महाराज मैने तो आपको अपनी ज़िंदगी के तीस साल दिए आप वो झूठे इल्ज़ाम और झूठे सबूत देखकर सब भूल गए।"
वज़ीर की ये सारी बातें सुनकर राजा की आंखे शर्म से नीचे झुक गई। राजा ने वज़ीर के हाथ में ये फैसला सौंपा की वो दरबारियों को जो सज़ा देना चाहे वो दे सकता हैं। लेकिन वज़ीर ने सारे दरबारियों को माफ किया उनके ऊपर दुबारा भरोसा किया
सीख:
वज़ीर चाहता तो दरबारियों को कोई भी सज़ा दे सकता था लेकिन वज़ीर ये जानता था की इंसान को सज़ा देकर सुधारा नही जा सकता जैसे उसने राजा की आंखे खोली और वैसे सारे दरबारियों को माफ किया जिससे की राजा और दरबारियों की नज़रों में वज़ीर इज़्ज़त और बड़ गई ऐसे ही इंसान को भी उसकी गलती का अहसास दिलाओ बिना सज़ा दिए।
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